इंदौर के कृषि वैज्ञानिकों ने जेएस 97-52 एवं अमेरिकी सोयाबीन की क्रॉस वैरायटी विकसित की, जानिए विशेषताएं.. 

8 साल के लंबे रिसर्च के बाद तैयार की गई इस नवीन Soybean variety की विशेषताओं एवं पैदावार की जानकारी पढ़िए..

Soybean variety | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान इंदौर के कृषि वैज्ञानिकों ने 8 साल के लंबे रिसर्च के पश्चात सोयाबीन की नवीनतम किस्म को चिन्हित किया है। सोयाबीन की इस नवीनतम किस्म की सबसे प्रमुख विशेषता यह एक ही इसे भारतीय एवं अमेरिकी सोयाबीन की किस्म से क्रॉस करके तैयार किया गया है। सोयाबीन की यह किस्म बेहतर उत्पादन देगी। इतना ही नहीं इंदौर में विकसित हुई सोयाबीन की यह नई किस्म हिमाचल और उत्तराखंड में भी अच्छी पैदावार देगी। सोयाबीन की इस नवीनतम किस्म Soybean variety के बारे में आइए जानते हैं..

लंबे रिसर्च के बाद तैयार हुई Soybean variety 

नाथ हिल जोन में सफल रहने पर Soybean variety  एनआरसी-197 किस्म का अलमोड़ा उत्तराखंड और पालमपुर हिमाचल प्रदेश के सोयाबीन अनुसंधान केंद्रों पर तीन साल परीक्षण किया गया। तीन साल के पैदावार के परिणाम बेहतर रहे। इसका औसत 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहा। पहाडी क्षेत्रों में यह फसल 112 दिन में तैयार होगी जबकि वर्तमान में प्रचलित प्रजाती की सोयाबीन 120 से 125 दिन में तैयार होती है।

इंदौर अनुंसधान केंद्र में विज्ञानियों ने साल 2012 में रिसर्च शुरू हुआ और 2020 में Soybean variety की नई किस्म विकसित हुई। इसको 2021 में देशभर के चालीस सोयाबीन अनुसंधान केंद्र में परीक्षण के लिए भेजा गया। इन सेंटरों पर प्रथम परीक्षण के बाद सोयाबीन की यह किस्म नाथ हिल जोन में सर्वाधिक सफल रही। अन्य सेंटरों पर अपेक्षा के अनुसार परिणाम नहीं मिले।

नई किस्म आसानी से पच सकेगी

इंदौर के विज्ञानियों ने आठ साल की रिसर्च के बाद Soybean variety सोयाबीन की नई किस्म विकसित की है, जो नाथ हिल क्षेत्र हिमाचल और उत्तराखंड में अच्छी पैदावार देगी। दोनों राज्यों में तीन साल चले परीक्षण के परिणाम में सामने आया कि अभी तक मौजूद सोयाबीन की प्रजातियों में यह सर्वश्रेष्ठ है। मौजूदा प्रजातियाें में कुछ ऐसे तत्व होते है, जिन्हे पचाने में मुश्किल होती है। जबकि विकसित की गई यह नई किस्म आसानी से पच सकेगी।

Soybean variety सोयाबीन की नई किस्म विकसित करने वाली वैज्ञानी डा. अनीता रानी का कहना है कि सोयाबीन में कूनिट्स ट्रिप्सिन इन्हीवीटर एंटी न्यूट्रिएंसन पाए जाते है, जो पाचन में परेशानी देते है। इसलिए सोयाबीन की नई किस्म से एंटी-न्यूटिएंट्स को हटा दिया गया है। इसको बिना प्रोसेस के भी आसानी से खाया जा सकेगा। यह फूड जोन और तिलहन दोनों रूप में उपयोग हो होगी।

अमेरिकी सोयाबीन से क्रॉस करके विकसित की

Soybean variety सोयाबीन को खाने के लिए उपयोगी बनाने के लिए विज्ञानियों ने यूएसए की सोयाबीन से मध्यप्रदेश की सोयाबीन को क्रास कराया। मध्यप्रदेश की जीएस-97-52 सोयाबीन को यूएसए की पीयू-542044 किस्म से क्रास किया। यूएसए की इस किस्म में एंटी न्यूट्रिएंसन नहीं पाए जाते है जबकि मध्यप्रदेश की वैरायटी पैदावार अच्छी देती है। इसलिए मध्यप्रदेश और यूएसए की सोयाबीन वैरायटी से क्रास कर नई किस्म तैयार की गई।

किसानों को कब मिलेगी सोयाबीन की यह वैरायटी

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि रिसर्च के परिणामों के आधार पर सोयाबीन की नई किस्म ‘एनआरसी 197’ को चिन्हित किया जा चुका है। अब गजट नोटिफिकेशन के बाद यह किस्म किसानों को उपलब्ध हो सकेगी। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर के निदेशक डा. केएच सिंह ने बताया कि इंदौर में विकसित सोयाबीन की नई किस्म कई चरण के प्रशिक्षण के बाद चिन्हित हुई है। अब सरकार इसको नोटिफाइड करेगी, इसके बाद किसानों को यह उपलब हो सकेगी।एनआरसी-197 ने नार्थ हिल जोन में अच्छा रिस्पांस किया है।

बिना प्रोसेस के खाने में उपयोग हो सकेगी

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि Soybean variety सोयाबीन की नई किस्म सालों की रिसर्च के बाद तैयार हुई। परीक्षण में नाथ हिल के तापमान और वातावरण में सफल रही है। इसको मार्च माह में हुई वार्षिक जनरल मीटिंग में चिन्हित किया है। यह किस्म किसानों को अच्छी पैदावार देने के साथ ही बिना प्रोसेस के खाने में उपयोग हो सकेगी। सोयाबीन में प्रोटीन बड़ी मात्रा में पाए जाते है, इसी वजह से खाने में उपयोग होती है। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (आइआइएसआर) इंदौर के विज्ञानियों ने फूड ग्रेड वैरायटी में सोयाबीन की नई किस्म ‘एनआरसी 197’ विकसित की है। जो अच्छी पैदावर देने के साथ ही खाने में उपयोग हो सकेगा।

सोयाबीन कि इस किस्म की प्रमुख विशेषताएं

  • इंदौर के विज्ञानियों ने आठ साल की रिसर्च के बाद सोयाबीन की नई किस्म को विकसित किया गया।
  • इंदौर में विकसित हुई सोयाबीन की यह नवीनतम किस्म NRC 197 मध्यप्रदेश और यूएसए की सोयाबीन वैरायटी से क्रास कर तैयार की गई है।
  • हिमाचल और उत्तराखंड में पैदावार देगी।
  • यह किस्म किसानों को अच्छी पैदावार देने के साथ ही बिना प्रोसेस के खाने में उपयोग हो सकेगी।
  • बिना प्रोसेस के भी आसानी से इसे खाया जा सकेगा। यह फूड जोन और तिलहन दोनों रूप में उपयोग होगी। Soybean variety 
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